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‘बेवफ़ा ज़िंदगी’ ग़ज़ल संग्रह के रचियता की मनाई 76 वीं जयंती

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रतन प्रकाश सुभाषित की याद में काव्य गोष्ठी का आयोजन

सिकंदराबाद: सुप्रसिद्ध कवि स्वर्गीय रतन प्रकाश सुभाषित के 76वें जन्म दिन के अवसर पर सिकंदराबाद काव्य मंच के बैनर तले “एक शाम सुभाषित जी के नाम” शीर्षक से एक काव्य गोष्ठी का आयोजन आर्य समाज मन्दिर में किया गया। अध्यक्षता पूर्व प्रधानाचार्य वी एस सक्सैना ने की तथा संचालन सुरेंद्र सौरभ व मक़सूद जालिब ने संयुक्त रूप से किया। मुख्य अतिथि के रूप में डाक्टर नरेश गुप्ता रहे तथा विशिष्ट अतिथियों में भगवत प्रसाद शर्मा,पवन शर्मा तथा अनूप भाटी रहे। सुरेंद्र सौरभ ने काव्य संकलन “बेवफ़ा ज़िंदगी” के रचनाकार रतन प्रकाश सुभाषित के साहित्य और जीवन पर प्रभावशाली ढंग से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सुभाषित जी ने ज़िंदगी के सभी पहलुओं पर बहुत बारीकी से अपनी नज़र रखी और उसका वर्णन शुद्ध सरल शब्दों में किया है। उनकी ग़ज़लों में ग्रामीण परिवेश, इंसानी रिश्तों के उतार चढ़ाओ, दुःख, दर्द, ख़ुशी, आशा, निराशा वफादारी और बेवफ़ाई के इंद्र धनुषी रँग जगह जगह बिखरे नज़र आते हैं।
सुभाषित जी के पुत्र प्रसिद्ध कवि दिव्य हँस दीपक,सचिन सागर,हिमाचल कौशिक तथा सुनीता सिंहल ने ‘पिता’ पर अपनी रचनाएँ पढ़ कर भाव विभोर कर दिया। पंकज तायल और शीशराम आर्य, शीश पाल सिंह आदि के भजनों ने गोष्ठी को भक्तिरस से सराबोर कर दिया।

मक़सूद जालिब ने पढ़ा –

‘क़ायम थी जिनके दम से मुहब्बत की आबरू। वो लोग क्या हुए वो ज़माने किधर गए।।
इस शहरे अजनबी में किसे ढूँढते हैं आप । जिन को वफ़ा का पास था वो लोग मर गए।।

मनोज जैन ‘मानव’ ने कुछ यूँ पढ़ा –

महलों में, महफ़िलों में तलाशा बहुत तुझे । लेकिन मिली ग़रीब के घर में तू ज़िंदगी ।।

युवा कवि दिव्य हँस दीपक ने पढ़ा-

घोर तिमिर में उजियारे को दीप जलाना पड़ता है। दाग़ी चेहरों को खुलकर दर्पण दिखलाना पड़ता है।।

लाख ज़ुबाँ पर सरकारें प्रतिबंध लगाती हैं लेकिन। माँ वाणी के बेटों को कवि धर्म निभाना पड़ता है।।

शिव कुमार ‘सजल’ ने माँ को इस प्रकार याद किया-

माँ के प्यार को पाकर, मैं माँ से प्यार करता हूँ। उसकी एक आहट पर मैं सोता भाग पड़ता हूँ।।
उसको चोट जो लगती मेरा हाल क्या होता। सौ बार जीता हूँ मैं सो बार मरता हूँ।।

शृंगार रस के कवि हिमाचल कौशिक ने यूँ पढ़ा-

तुम्हारी याद आती है, जो मुझको तोड़ जाती है। मुहब्बत के सफ़र में वो अकेला छोड़ जाती है।।
तुम्हारी याद है, या है मेरी दीवानगी ‘हलचल’। जो मेरे रास्तों का रूख़ तेरे घर मोड़ जाती है।।

काव्य मंच की अध्यक्षा सुनीता सिंहल ने पढ़ा- 

हो रही है चर्चा,लोग कर रहे हैं बातें।
माँ बाप के जाने से दुःख बेटी को हो रहा है।।
एक बार उससे पूछो हर पल साथ रहा जो।
देखो उसकी ओर अश्कों का समुंदर पी रहा है।।

सचिन सागर ने माँ बाप के ऊपर रचना सुनाई-
माँ बाप की कड़ी हूँ, बुढ़ापे की लकड़ी हूँ।
उन के जीने की आस हूँ, उनका विश्वास हूँ।।

रतन प्रकाश सुभाषित के पौत्र कुमार भुवनेश्वर ने पढ़ा-

आँख जिस दिन खुली वो जुदा हो गए।
आज मेरे लिए वो ख़ुदा हो गए।।

इनके अलावा वी एस सक्सैना,सुरेंद्र सौरभ ने भी अपनी रचनाएँ पढ़ कर खूब वाहवाही बटोरी,अन्त में कार्यक्रम के संयोजक मनोज जैन मानव ने सभी का आभार प्रकट किया।

 

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