ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में नाग पंचमी का उल्लास शुरू हो गया है। गुरुवार रात 12 बजे मंदिर के शिखर पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खोले गए। पश्चात महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरी महारज ने भगवान नागचंद्रेश्वर का प्रथम पूजन किया। पूजा अर्चना के उपरांत आम दर्शन का सिलसिला शुरू हुआ जो शुक्रवार रात 12 तक अनवरत जारी रहेगा।
त्रिकाल पूजन की परंपरा
नागपंचमी पर नागचंद्रेश्वर मंदिर में त्रिकाल पूजा की परंपरा है। पट खोलने के साथ हुई प्रथम पूजा के बाद शुक्रवार दोपहर 12 शासन प्रशासन के अधिकारी भगवान नागचंद्रेश्वर का पूजन करेंगे। शाम 7:30 बजे भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद महाकालेश्वर मंदिर समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुजारी भगवान नागचंद्रेश्वर की पूजा करेंगे। शुक्रवार रात 12 बजे एक बार फिर से साल भर के लिए मंदिर के पट बंद हो जाएंगे।
क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है।
इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।