सिकंदराबाद: शनिवार को जहां पूरे देश में बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया गया। वहीं सिकंदराबाद में रावण के पुतले का दहन चतुर्दशी को यानी आज होगा। यह परंपरा नगर में वर्षों पुरानी चली आ रही है। शनिवार को पूरे देश में दशहरा के दिन शाम को रावण ,कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले का दहन किया गया। लेकिन सिकंदराबाद नगर में दशहरे से 4 दिन बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है। श्री रामलीला कमेटी के प्रभारी अरविंद दीक्षित ने बताया कि नगर में रावण के पुतले का दहन चौहदस को होने की वर्षों पुरानी परंपरा है। ऐसा बताया जाता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी उसके शव को लेकर 4 दिन तक नगर स्थित किशन तालाब मंदिर पर जीवित होने की आस में बैठी रही,लेकिन जब 4 दिन बाद भी रावण जीवित नहीं हुआ तो उसका अंतिम संस्कार किया गया। तभी से चतुर्दशी को रावण के पुतले के दहन की परंपरा चली आ रही है। रामलीला मैदान के पास ही बाराही मेले का आयोजन भी होता है।
दरअसल,बिसरख के अलावा भी सिकन्द्राबाद एक ऐसा शहर है जहां दशहरा के दिन रावण दहन नहीं किया जाता। दिल्ली से महज 55 किलोमीटर दूर बुलंदशहर ज़िले के सिकंदराबाद तहसील में दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता, क्योंकि सिकंदराबाद में रावण के पुतले का दहन चौदस, यानि दशहरा के चार दिन बाद किया जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर दिया था। तो उसकी पत्नी मंदोदरी को रावण के फिर से जीवित होने की आश थी। मंदोदरी रावण के शव को लेकर नगर के ऐतिहासिक किशन तालाब मंदिर पर पहुंची थी। मान्यता है कि मंदोदरी ने किशन तालाब स्थित भगवान शिव के मंदिर पर रावण के शव को रखकर रावण को जीवित कराने के लिए चार दिनों तक भगवान शिव की पूजा की थी। चार दिनों तक भगवान शिव की आराधना करने के बाद भी रावण के जीवित नहीं होने पर मंदोदरी ने रावण का अंतिम संस्कार किया था। दशहरे के चार दिन बाद रावण का संस्कार करने की प्रथा सिकंदराबाद में आज तक चली आ रही है। जिसके चलते आज भी सिकंदराबाद में रावण के पुतले का दहन दशहरे के बजाए चार दिन बाद चौदस पर किया जाता है। इस अवसर पर नगर के ऐतिहासिक किशन तालाब मंदिर पर चौदस के मेले का भी आयोजन किया जाता है। मेले में नगर के अलावा क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।